Thursday, January 17, 2013
कोर्ट ने सुनी फरियाद, तो दूर हो जाएंगे सारे विवाद
Ghaziabad | Last updated on: October 22, 2012 12:00 PM IST
आरडब्लूए सदस्य ने डाली हाईकोर्ट में पीआईएल
गाजियाबाद। फ्लैट खरीददारों के हितों की रक्षा के लिए प्रदेश में यूपी अपार्टमेंट एक्ट 2010 लागू तो हो गया है लेकिन एक बड़ा सवाल भी उठ रहा है। सवाल यह है कि एक्ट के नियमों का पालन आखिर कैसे सुनिश्चित किया जाए? इसी सवाल का जवाब लेने के लिए बिल्डर प्रोजेक्ट में रहने वाले रेजीडेंट्स ने कोर्ट की शरण ली है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने एक्ट के नियमों को कड़ाई से लागू कराने के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। कोर्ट ने यदि उनकी याचिका पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी तो प्रदेश भर के बिल्डर प्रोजेक्ट्स में रहने वाली लाखों की आबादी और भावी खरीददारों को बड़ा फायदा मिलेगा।
फ्लैट में रहने वाली आबादी के हितों की रक्षा के लिए यूपी अपार्टमेंट (प्रमोशन ऑफ कंस्ट्रक्शन, ऑनरशिप एंड मेंटीनेंस) एक्ट 2010 में बनाया गया। 2011 में एक्ट के रूल्स बने। करीब एक वर्ष बीतने के बाद भी एक्ट का पालन बड़ी चुनौती बना हुआ है। रेजीडेंट्स बिल्डरों के खेल का शिकार हो रहे हैं। बिल्डर प्रोजेक्ट्स में खस्ताहाल सुविधाओं को लेकर हादसे, रेजीडेंट्स और बिल्डरों के विवाद जारी हैं।
छेड़ी हक पाने की मुहिम
गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी आलोक कुमार ने प्रदेश भर में यूपी अपार्टमेंट एक्ट के प्रावधानों को लागू कराने की मुहिम छेड़ दी है। उन्होंने प्रदेश सरकार, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटीज, मेरठ के खिलाफ हाईकोई में जनहित याचिका दायर की है। आलोक ने बताया कि एक्ट में रेजीडेंट्स के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। एक्ट को लागू कराने की जिम्मेदारी विकास प्राधिकरणों की तय की गई है। नियमों का पालन न होने के कारण रेजीडेंट्स समस्याओं से जूझ रहे हैं।
हाईकोर्ट ने स्वीकार ली याचिका
एडवोकेट कुनाल रवि सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने अपार्टमेंट एक्ट से जुड़ी जनहित याचिका स्वीकार कर ली है।
1 बिल्डर फ्लैट बेचने से पहले डिस्क्लोजर फार्म भरें और पूरी ईमानदारी से प्रोजेक्ट से जुड़ी प्रत्येक जानकारी दें।
2 रजिस्ट्री की बजाय डीड ऑफ अपार्टमेंट की जाए। ऐसा होने के बाद कॉमन एरिया बराबर भाग में आवंटियों में विभाजित होगा।
3 प्रोजेक्ट के स्वीकृत और घोषित प्लान में किसी भी तरह के परिवर्तन से पूर्व आवंटी की सहमति लेना हो अनिवार्य हैं।
गाजियाबाद। फ्लैट खरीददारों के हितों की रक्षा के लिए प्रदेश में यूपी अपार्टमेंट एक्ट 2010 लागू तो हो गया है लेकिन एक बड़ा सवाल भी उठ रहा है। सवाल यह है कि एक्ट के नियमों का पालन आखिर कैसे सुनिश्चित किया जाए? इसी सवाल का जवाब लेने के लिए बिल्डर प्रोजेक्ट में रहने वाले रेजीडेंट्स ने कोर्ट की शरण ली है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने एक्ट के नियमों को कड़ाई से लागू कराने के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। कोर्ट ने यदि उनकी याचिका पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी तो प्रदेश भर के बिल्डर प्रोजेक्ट्स में रहने वाली लाखों की आबादी और भावी खरीददारों को बड़ा फायदा मिलेगा।
फ्लैट में रहने वाली आबादी के हितों की रक्षा के लिए यूपी अपार्टमेंट (प्रमोशन ऑफ कंस्ट्रक्शन, ऑनरशिप एंड मेंटीनेंस) एक्ट 2010 में बनाया गया। 2011 में एक्ट के रूल्स बने। करीब एक वर्ष बीतने के बाद भी एक्ट का पालन बड़ी चुनौती बना हुआ है। रेजीडेंट्स बिल्डरों के खेल का शिकार हो रहे हैं। बिल्डर प्रोजेक्ट्स में खस्ताहाल सुविधाओं को लेकर हादसे, रेजीडेंट्स और बिल्डरों के विवाद जारी हैं।
छेड़ी हक पाने की मुहिम
गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी आलोक कुमार ने प्रदेश भर में यूपी अपार्टमेंट एक्ट के प्रावधानों को लागू कराने की मुहिम छेड़ दी है। उन्होंने प्रदेश सरकार, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटीज, मेरठ के खिलाफ हाईकोई में जनहित याचिका दायर की है। आलोक ने बताया कि एक्ट में रेजीडेंट्स के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। एक्ट को लागू कराने की जिम्मेदारी विकास प्राधिकरणों की तय की गई है। नियमों का पालन न होने के कारण रेजीडेंट्स समस्याओं से जूझ रहे हैं।
हाईकोर्ट ने स्वीकार ली याचिका
एडवोकेट कुनाल रवि सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने अपार्टमेंट एक्ट से जुड़ी जनहित याचिका स्वीकार कर ली है।
1 बिल्डर फ्लैट बेचने से पहले डिस्क्लोजर फार्म भरें और पूरी ईमानदारी से प्रोजेक्ट से जुड़ी प्रत्येक जानकारी दें।
2 रजिस्ट्री की बजाय डीड ऑफ अपार्टमेंट की जाए। ऐसा होने के बाद कॉमन एरिया बराबर भाग में आवंटियों में विभाजित होगा।
3 प्रोजेक्ट के स्वीकृत और घोषित प्लान में किसी भी तरह के परिवर्तन से पूर्व आवंटी की सहमति लेना हो अनिवार्य हैं।
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